बीस साल पहले मैने प्राणायाम ध्यान योग सिखा। प्राणायाम का पुरा खेल अपने सासोंकेद्वारा चलता है। मै इसका निरंतर अभ्यास करता आ रहा हु और मुझे पंद्रह साल पहले एक स्वरविज्ञान का ग्रंथ मेरे ट्रेन यात्रा के दौरान कोई एक बुढा व्यक्ति पढ रहा था। मैने थोडी देरके लिये वो ग्रंथ हाथ मे लिया और उसके अंदर के पन्ने खोलकर देख रहा था। इस बडे ग्रंथमे स्वरविज्ञान के साथ वास्तुशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र,हस्तस्पर्श चिकीत्सा आदि विषयोंपर लिखा हुआ था। पर सिर्फ वास्तुशास्त्र के अलावा कीसी शास्त्रको नही जानता था। मगर उसी समय शायद इश्वरने मुझे स्वरविज्ञान का ज्ञान लोगोंतक देनेकेलिये चुन लिया था। शायद भगवान शिव मुझे वो ग्रंथ दिखानेकेलिये आये होंगे ऐसा मै कभी-कभी मानता हु। उस दिनसे मेरे सामने स्वरविज्ञान के बारेमे आधी अधुरी बाते आने लगी। यह बहुत बडा विज्ञान है ऐसा बड़े-बुजुर्ग लोग कहने लगे। मै बहुत जगह इस ज्ञान के संबंधित पुणेमे पुस्तक ढुंडना शुरु कीया। मगर वो छोटी-छोटी बीस तीस रुपये की छोटी पुस्तकें थी। मै वो ग्रंथ ढुंड रहा था जो मुझे ट्रेनमे उस व्यक्ति के पास था। मुझे उस ग्रंथका नाम भी नही पता था। दो सालसे पागलोकी तरह उस बडे ग्रंथ की तलाश शुरू की मगर मै असफल रहा। मैने ऐसे ग्रंथके बारेमे परीवार तथा मित्रोंसे बोल चुका था ।
एक दिन फाल्गुन महिनेके अंतमे एक दोस्तका मुझे फोन आता है। और वो मुझे तुरंत अपने घर बुलाता है। तो मै बहुत चकित हो जाता हु की वो जो मैने ग्रंथ ट्रैन मे देखा था वो ग्रंथ मेरे सामने था। मैने दोस्तसे पुछा ये आपको कहा मिला तो उसने कहा की उसके एक रीश्तेदार पुणे कीसी काम के सिलसिलेमे आये थे। वो हर शाम ग्रंथ पढते थे और उसके संबंधित बाते घरमे बताते थे।
कुछ दिन बाद मित्र का रीश्तेदार कीस कारणवश तुरंत अपने चालिसगाव के लिये चले गये। मगर उनका ग्रंथ यहा ही रह गया था। वो रीश्तेदार फीर पंद्रह दिन बाद वापस पुणे आनेवाले थे। मैने मित्रसे चार पांच दिनोकेलिये वो ग्रंथ मांग लिया । उसी दिन से मैने स्वरविज्ञान के सारे श्लोक और उसका अर्थ लिखकर लिये। इसके भितर 395 श्लोक और गहरी गुप्त साधनाये बतायी थी। उसका प्रिंट न निकलके सारा विवरण हाथ से लिखा। जब मै उसे लिख रहा था तब अपने सनातन धर्म के नियमित आचरण थे और आज कुछ लोग उसे अंधश्रद्धा नाम देकर नकार रहे है। मैने इस शास्त्र का बहुत गहरा अध्ययन कीया।


अपने सनातन धर्म की सारी परंपराओं के बारेमे जाना । जैसेकी मै पिताजी को देखता था वो सुबह उठनेकेबाद हाथ को देखकर कुछ तो बोलते थे। वो मै बचपन से देखता आ रहा हु।छींक आनेपर कोई बाहर नही जाता था, खाना खानेकेबाद वामकुक्षी करना,कोई बाहर दुर की यात्रा तथा पढाई या कामकेलिये विदेश जा रहा है तब घर का बुजुर्ग व्यक्ती उसे घी शक्कर देती थी। दुल्हन घर के भीतर दाये पैर से ही आनी चाहीये। ऐसे अनगिनत क्रीयाये पुरे भारतवर्ष मे हो रही है। यह पुरब से पच्छिम और उत्तर से दक्षिण तक हो रही है। इसका मतलब यह स्वरविज्ञान हर एक सनातनी के रगरगमे उनके दैनंदिन व्यवहार मे बैठ गया है। मगर आज यही सनातनी अपने शास्त्रीय शास्त्रोंको नकार कर विदेशी तार्किक बातोंपर अमल कर रहा है।और यह बात आज बहुत ही घातक साबित हुयी है। लोग अपनी परंपराओंको नकार रहे है। इसी बात का दुःख मुझे हो रहा है। इसलिए यह शास्त्र भी कालवश हो गया। मगर मै इसे अपने सनातनी लोगोंको बताना चाहता हु,सिखाना चाहता हु।
जैसे-जैसे मै हर श्लोक की डीकोडिंग कर रहा हु वैसे-वैसे लोग मेरे साथ जुड रहे है। मुझे ज्ञान प्रदान करनेमे मदत कर रहे है।
अपनी सृष्टि पांच तत्वोंसे उत्पन्न हुयी। इसमेसे अगर एक तत्व भी कमजोर होता तो यह सुंदर धरती नही बन पाती। पार्वती शिवजी को कहती है स्वामी आपने इन पांच तत्वों का निर्माण कीया,जीवजंतु बनाया मगर इसे व्यवस्थापित करनेकी योजना बनायी है क्या?। तब शिवजी कहते है,"सुमुखी,इसकी व्यवस्था करनेके लिए मनुष्यप्राणी बनाया जो इसे व्यवस्थापित कर सके । और मै उसके भीतर हृदयमे बैंठकर सासोंद्वारा सही गलत की दिशा प्रदान करनेवाला हु। मगर इस हर व्यक्तिने अपने सासोंपर पुरी श्रद्धा रखकर जो भी कार्य करेगा उसे पुरी सफलता मिलेगी। मगर आज का व्यक्ति अपने अहंकार के वजहसे अपनी सारी शक्तिया भुल चुका है।